संपादकीय विभाग व संरक्षक बोर्ड

प्रबंध संपादक-अनिल यादव (इंजीनियर), एसोसिएट एडिटर- राव धर्मेंद्र (कोसली), संरक्षक- राजेंद्र बहादुर यादव (मुंबई), राजकुमार यादव (कापसहेड़ा), मुकेश यादव (नांगलोई), सुबोध यादव (कापसहेड़ा), महेंद्र सिंह यादव (गुरुग्राम), अशोक यादव (बहरोड़), राजेंद्र यादव (गुरुग्राम), विक्रम यादव, रविन्द्र यादव (दिल्ली), संजय यादव (लखनऊ), मदन सिंह यादव (इंदौर), छती यादव (दिल्ली), ओ. पी. यादव (द्वारका-दिल्ली), बाबूलाल यादव (द्वारका-दिल्ली), उम्मीद सिंह (गुरुग्राम), नवीन यादव (उप्र), श्रीभगवान यादव (दिल्ली) . मार्गदर्शक- आर एन. यादव (कल्याण), जगपती यादव (दहिसर), राधेमोहन यादव (रिको रबर), प्रेमसागर यादव, अवधराज यादव (अध्यक्ष-अ. भा. व. युवा यादव महासभा, उत्तर प्रदेश)

1857 के गद्दारों की करतूतें और इनाम



- इंजी. अनिल यादव

1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में जहाँ बहुत सारे स्वातंत्र्य वीर जान हथेली पर रखकर देश को आजाद कराने की जंग लड़ रहे थे, वहीं कुछ स्वार्थी, लालची और चाँद सिक्कों पर अपना ईमान बेच देनेवाले गद्दार पल-पल की सूचनाएं अंग्रेजों को मुहैया करा रहे थे। ऐसे बहुत सारे खत और दस्तावेज सरकारी रिकार्डों से प्राप्त हुए हैं। इन्ही रिकार्डों के आधार पर सम्पादक शम्सुल इसलाम ने एक पुस्तक "1857 : जासूसों के ख़ुतूत" तैयार की है। इस पुस्तक में रेवाड़ी के राजा राव तुलाराम के सम्बन्ध में भी काफी जानकारी दी गई है। प्रस्तुत है इन जासूसों से प्राप्त राव तुलाराम से संबंधित कुछ अहम जानकारियां :-
 15 जुलाई 1857 को मेघराज नामक अंग्रेजों के जासूस ने खबर भिजवाई -
.... सेना के सौ सवारों को बल्लभगढ़ के राजा से दो लाख रुपये और झज्जर के नवाब से 5 लाख रुपये लाने को भेज गया है। शहर रिवाड़ी से कुछ तोपें और दूसरा सामान लाने के लिए 110 सवारों को भेज गया है। ...(जासूसों के ख़ुतूत, पृष्ठ 83)
 24 जुलाई 1857 को जवाहर सिंह और मामराज नामक जासूसों ने खबर दी-
... राव तुलाराम का वकील 23 सवारों सहित सहायता के लिए रेवाड़ी से यहाँ आया है। राव स्वयं भी यहाँ आने वाले हैं।  ... (जासूसों के ख़ुतूत, पृष्ठ 92)
 25 जुलाई 1857 को अच्छू और गोपाल नाम के अंग्रेजी जासूसों ने खबर दी-
... राव तुलाराम कल कोट कासिम परगना से 10,000 रुपये लेकर आया है। ... (जासूसों के ख़ुतूत, पृष्ठ 94)
 6 सितम्बर 1857 को तुराब अली जासूस ने खबर भिजवाई-
... आज बख्त खां ने कहा है कि यदि आदेश दिया जाय तो रेवाड़ी जाकर तुलाराम ने जो राशि जमा की है उसको और उसके आस-पास के जिलों से भी कुछ रकम ले आए और वहां का प्रबंध ठीक कर आये।  बख्त खां को इसका हुक्मनामा मिल गया है। अब देखना यह है कि वहां जाता है या नहीं। अलवर का एक वकील एक प्रार्थना लेकर यहाँ आया है, उसने कोई नजराना भेंट नहीं किया। ... (जासूसों के ख़ुतूत, पृष्ठ 172)
 6 सितम्बर 1857 को ही गौरीशंकर जासूस की खबर आई-
... आज पच्चीस सवार पैसा लेने लोनी गए हैं। तुलाराम ने रिवाड़ी से अभी तक रकम नहीं भेजी है। आज परिषद में इसकी चर्चा हुई थी। उसने 3 हजार बोरों की भी मांग की है। उसने केवल 700 सौ भेजे हैं। अहसानुल्लाह खां बादशाह को उसके खिलाफ भड़काता रहता है और किले में लोग तुलाराम के बारे में हाकिम की सलाह को सही मानते है। आज तुलाराम को याद कराते हुए फिर एक पत्र भेज गया।  ... (जासूसों के ख़ुतूत, पृष्ठ 174-175)
 11 सितम्बर 1857 को फतह मोहम्मद खां ने लिखा-
... रिवाड़ी के राज राव तुलाराम ने आज 4,51,000 रुपये भेजे हैं। ... तुलाराम को अलीपुर पर हमला करने के लिए कहा गया है। उसकी सहायता के लिए दिल्ली से एक रेजिमेंट भेजी जा रही है।... (जासूसों के ख़ुतूत, पृष्ठ 184-185)
 1857 के स्वतंत्रता संग्राम को कुचलने के बाद अंग्रेजों ने देश के गद्दारों और अपने वफादार राजाओं, रजवाड़ों और मददगारों को ईनाम, इकरार और खिलअतें अता फ़रमाई। ऐसी ही कुछ कहानियां और जानकारियां "1857 के गद्दार राजे-रजवाड़े" में दी गई है। इसमें जींद के राजा स्वरूप सिंह की अंग्रेज-भक्ति और सेवाओं का ब्यौरा पेश करते हुए बताया गया है कि-
 ... निष्ठा गदर के दौरान एक बार फिर जाहिर हुई। उन्होंने 800 सौ आदमियों के साथ करनाल की छावनी को सम्भाला। ... राजा ने सवयं व्यक्तिगत रूप से नारनौल की लड़ाई में भाग लिया जिसके लिए मुख्य सेनापति ने उन्हें बधाई दी और उन्हें उपहार स्वरूप जब्त की गई एक तोप पेश की।...
 ... दिल्ली के पतन के बाद राजा ने 200 आदमियों को जनरल वान कॉटलैंड के साथ हांसी और कर्नल आर. लारेंस के साथ 110 आदमियों को झज्जर भेजा, जबकि 250 आदमी नारनौल की मोर्चाबंदी पर तैनात रखे। ...
 ... राजा की शानदार सेवाओं के लिए उन्हें 600 वर्गमील का दादरी क्षेत्र प्रदान किया गया।... उन्हें संगरूर के निकट कलारान परगना में तरह गांव भी दिए गए जिनका मूल्य 1,88,000 रुपये आंका गया है।... उन्हें मानद उपाधियों के साथ उनकी सलामी बढ़ाकर ११ तोपों की कर दी गई।...
 नाभा रियासत के राजा भरपूर सिंह द्वारा की गई अंग्रेजों की सेवा की खूब तारीफ़ की गई और उसका विस्तृत ब्यौरा पेश किया तथा ईनाम दिए गए--
 ... राजा की आदर्शपूर्ण निष्ठां के लिए उन्हें बावल और कांटी मंडलों को पुरस्कार स्वरूप दिया गया जिनकी कीमत एक लाख रुपये आंकी गई। ये तोहफा उन्हें खतरे और अशांति को दबाने में सक्रीय भूमिका निभाने के लिए दिया गया जिसे रिवाड़ी के राव तेजसिंह के पौत्र तुलाराम ने संगठित किया था।...
 पाटोदी के नवाब ने गदर को कुचलने में जो अभूतपूर्व योगदान दिया उसके बारे में ब्रिटिश दस्तावेज बताते हैं कि--
 ... उन्होंने गुड़गांव के भोड़ा परगने में बगावत को दबाने में सक्रीय सहयोग दिया जो रिवाड़ी के राव तुलाराम ने संगठित किया था। उनके सैन्य दल ने जौरासी के बाहर हुई लड़ाई, जो दो दिन तक चली थी और जिसमे एक सौ से ज्यादा अहीर, गूजर और मेव मारे गए थे। पंजाब की स्थानीय रियासतों और राजाओं की वरीयता सूची में पटोदी को सत्तरहवां नंबर प्राप्त हुआ और उन्हें वायसराय से भेंट करने का अधिकार प्राप्त हुआ।...

 पुस्तक के अंत में लिखा है कि "इस तरह के हजारों दस्तावेज हैं जो इन गद्दारों की करतूतों का ब्यौरा समाये हुए है। एक आजाद हिंदुस्तान में इन दस्तावेजों को आज तक जमा क्यों नहीं किया गया, यह भी शर्मसार करता है। "

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